सम्पूर्ण आरती संग्रह : Complete Aarti Lyrics Collection

सम्पूर्ण आरती संग्रह
Complete Aarti Lyrics Collection

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सम्पूर्ण आरती संग्रह

Complete Aarti Lyrics Collection

  1. ॥ श्री गणेशजी की आरती ॥
  2. ॥ आरती गजबदना विनायक की ॥
  3. ॥ आरती श्री गणपति जी ॥
  4. ॥ हनुमान जी की आरती ॥
  5. ॥ आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
  6. ॥ श्री गोपाल की आरती ॥
  7. ॥ आरती श्री कृष्ण कन्हैया की ॥
  8. ॥ आरती श्री रामचंद्र जी ॥
  9. ॥ श्री रघुवर आरती ॥
  10. ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
  11. ॥ श्री शिव शंकर जी की आरती ॥
  12. ॥ आरती श्री जगदीशजी ॥
  13. ॥ श्री लक्ष्मीनारायण आरती ॥
  14. ॥ श्री रामायणजी की आरती ॥
  15. ॥ शनिदेव की आरती ॥

॥ श्री गणेशजी की आरती ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ x2

एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूषक की सवारी॥ x2

(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूषक की सवारी॥ x2)

पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
(हार चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।)

लड्डू का भोग लगे, संत करें सेवा॥ x2

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ x2

अंधे को आंख देता, कोढ़ी को काया।
बांझन को पुत्र देता, निर्धन को माया॥ x2

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ x2

(दीनान की लाज रखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥ x2)

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ x2

॥ आरती गजबदना विनायक की ॥

आरती गजबदना, विनायक की।

आरती गजबदना, विनायक की।
सुर-मुनि पूजिता, गणनायक की॥

आरती गजबदना, विनायक की।
सुर-मुनि पूजिता, गणनायक की॥

आरती गजबदना विनायक की॥

एकदंत शशिभाल गजानन,
विघ्न विनाशक शुभ गुण कानन।
शिवसुत वंद्यमान चतुरानन,
दुःख विनाशक सुखदायक की॥

आरती गजबदना विनायक की॥

ऋषि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति,
विमल बुद्धि दाता सुविमल मति।
अघ वन दहन अमल अबिगत गति,
विद्या विनय विभव दायक की॥

आरती गजबदना विनायक की॥

पिंगल नयन विशाल शुंडधार,
धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश कर।
लंबोदर बधा विपत्ति हर,
सुर वंदिता सब विधि लायक की॥

आरती गजबदना विनायक की॥

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॥ आरती श्री गणपति जी ॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरे।

गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरे।
तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अरजा करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

ऋद्धि सिद्धि दक्षिणा वामा, विराजे अरु आनंद सो चंवर करें।
धूप-दीप अरु लिए आरती, भक्त खड़े जयकारा करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

गुरु के मोदक भोग लगत है, मूषक वाहन चढ़े सारे।
सौम्य रूप को देख गणपति के, विघ्न भागे जा दूर परे॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपहर दूर परे।
लियो जन्म गणपति प्रभु जी, दुर्गा मन आनंद भरे॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

अद्भुत बाजा बजा इंद्र का, देव बंधु सब गान करें।
श्री शंकर के आनंद उपजा, नाम सुन्यो सब विघ्न टरे॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

आनी विधाता बैठे आसन, इंद्र अप्सरा नृत्य करें।
देखा वेद ब्रह्मा जी जाको, विघ्न-विनाशक नाम धरे॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

एकदंत गजवदन विनायक, त्रिनयन रूप अनुप धरे।
पगखंभ सा उदर पुष्ट है, देव चंद्रमा हंस्य करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

दे श्राप श्री चंद्रदेव को, कलाहीन तत्काल करें।
चौदह लोक में फिरे गणपति, तीन लोक में राज्य करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

उठी प्रभात जप करें ध्यान, कोई ता के कार्य सर्व सरे।
पूजा काल आरती गवाए, ता के सिर यश छत्र फिरे॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

गणपति की पूजा पहले करने से, काम सभी निर्विघ्न सरे।
सभी भक्त गणपति जी के, हाथ जोड़कर स्तुति करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…॥

॥ हनुमान जी की आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की।

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥

लंका सो कोटि समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकाारे।
आनी संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पाताल तोरी जमकारे।
अहिरावण के भुजा उखारे॥

बायें भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥

सुर नर मुनि आरती उतारे।
जय जय जय हनुमान उचारे॥

कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसी बैकुंठ परम पद पावे॥

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॥ आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

गले में बैजंती माला, बजावे मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुंडल झलकला, नंद के आनंद नंदलाला॥

गगन सम अंग कान्ति काली, राधिका चमक रही आली।
लताओं में ठाढ़े बनमाली; भंवर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

कनकमय मोर मुकुट बिलसे, देवता दर्शन को तरसे।
गगन सो सुमन राशि बरसे; बाजे मुरचंग, मधुर मृदंग,
ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कली हारिणी श्री गंगा।
स्मरण ते होत मोह भंग, बसी शिव शिश, जटा के बीच,
हरे अघ कीच; चरण छवि श्री बनवारी की॥

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बीनू।
चहुं दिशि गोपी, ग्वाल, धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद्र,
कटत भव फंद; तेर सुन दीन भिखारी की॥

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

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॥ श्री गोपाल की आरती ॥

आरती युगल किशोर की कीजै, राधे धना न्यौछावर कीजै॥ x2

आरती युगल किशोर की कीजै, राधे धना न्यौछावर कीजै॥ x2

रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताही निरखि मेरा मन लोभा।
आरती युगल किशोर की कीजै…॥

गौर श्याम मुख निरखत रिझै, प्रभु को स्वरूप नयन भर पीजै।
कंचन थार कपूर की बाती, हरि आए निर्मल भई छाती।
आरती युगल किशोर की कीजै…॥

फूलन की सेजा फूलन की माला, रतन सिंहासन बैठे नंदलाला।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै, नटवर वेश देखि मन मोहै।
आरती युगल किशोर की कीजै…॥

आधा नीला पीत पट साड़ी, कुंज बिहारी गिरिवरधारी।
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी, आरती करें सकल ब्रज नारी।
आरती युगल किशोर की कीजै…॥

नंदलाला वृषभानु किशोरी, परमानंद स्वामी अविचल जोड़ी।
आरती युगल किशोर की कीजै, राधे धना न्यौछावर कीजै॥

आरती युगल किशोर की कीजै…॥

॥ आरती श्री कृष्ण कन्हैया की ॥

मथुरा कारागृह अवतारी, गोकुल यशोदा गोदा विहारी।

मथुरा कारागृह अवतारी, गोकुल यशोदा गोदा विहारी।
नंदलाला नटवर गिरिधारी, वासुदेव हलधर भैया की॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की॥

मोर मुकुट पीतांबरा छजै, कटी कछनी कर मुरली विराजै।
पूर्ण शरद ससि मुख लखि लजै, काम कोटि छवि जितवइया की॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की॥

गोपीजन रस राशि विलासी, कौरव कालिया कंस विनासी।
हिमकर भानु कृसानु प्रकासी, सर्वभूत हिय बसवइया की॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की॥

कहूँ रण चढ़ाई भागी कहूँ जावै, कहूँ नृप कर कहूँ गाय चरावै।
कहूँ जगेश वेद जस गावै, जग नचाया ब्रज नचवइया की॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की॥

अगुण सगुण लीला बापू धारी, अनुपम गीता ज्ञान प्रचारि।
दामोदर सब विधि बलिहारी, विप्र धेनु सुर रखवइया की॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की॥

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॥ आरती श्री रामचंद्र जी ॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्।

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कंजारुणम्॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि, नौमि जनक सुतावरम्॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

भजु दीनबंधु दिनेश, दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंदकंद कौशल, चंद्र दशरथ नंदनम्॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु, उदार अंग विभूषणम्।
अजनुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

मन जाहि राचेउ मिलहि, सो वर सहज सुंदर सांवरो।
करुणा निधान सुजान, शील सनेह जानत रावरो॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

एहि भांति गौरी असीस सुन, सिय हित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानीही पूजी पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली॥

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन…॥

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॥ श्री रघुवर आरती ॥

आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत चित आनंद शिव सुंदर की।

आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत चित आनंद शिव सुंदर की।
दशरथ तनया कौशल्या नंदना, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकंदना।
अनुगत भक्त, भक्त उर चंदना, मर्यादा पुरुषोत्तम वर की।
आरती कीजै श्री रघुवर जी की…॥

निर्गुण सगुण अनुप रूप निधि, सकल लोक वंदित विभिन्न विधि।
हरण शोक भय दायक नव निधि, माया रहित दिव्य नरवर की।
आरती कीजै श्री रघुवर जी की…॥

जानकी पति सुर अधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक गति।
विश्व वंद्य अवन्ह अमिता गति, एक मात्र गति सचराचर की।
आरती कीजै श्री रघुवर जी की…॥

शरणागत वत्सल व्रतधारी, भक्त कल्पतरु वर असुरारी।
नाम लेता जग पावनकारी, वानर सखा दीन दुख हरा की।
आरती कीजै श्री रघुवर जी की…॥

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॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
हंसानन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज, चार चतुर्भुज, दशभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला, मुंडमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी, कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेतांबर पीतांबर, बाघांबर अंगे।
संकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगें॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमंडलु, चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी, जगपालनकारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्यें, ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी वा सावित्री, पार्वती संगें।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहेन पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्म में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥

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॥ श्री शिव शंकर जी की आरती ॥

हर हर हर महादेव!

हर हर हर महादेव महादेव!
सत्य, सनातन, सुंदर, शिव सबके स्वामी।
अविकारि अविनाशी, अजा अंतःकामी।
हर हर हर महादेव महादेव!

आदि, अनन्त, अनामय, अकाल, कालाधारी।
अमला, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी।
हर हर हर महादेव महादेव!

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तु्म त्रिमूर्ति धारी।
कर्ता, भर्ता, धार्ता, तुं ही संहारि।
हर हर हर महादेव महादेव!

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औधारदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी।
हर हर हर महादेव महादेव!

मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी रागी।
सदा शवशान विहारी, योगी वैरागी।
हर हर हर महादेव महादेव!

छला-कपाल, गरल गला, मुंडमाला व्याली।
चिता भस्मतना त्रिनयन, अयनमहाकाली।
हर हर हर महादेव महादेव!

प्रेत पिशाच सुसेविता, पीता जटाधारी।
विवसना विकट रूपधारी, रुद्र प्रलयकारी।
हर हर हर महादेव महादेव!

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधरा, शशिधर, सुखकारी।
अतिभामनिया, शान्तिकर, शिवमुनि मन-हरि।
हर हर हर महादेव महादेव!

निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हरा! कालातीत विभो।
हर हर हर महादेव महादेव!

सत, चित, आनंद, रसामय, करुणामय धाता।
प्रेम-सुधा-निधि प्रियतम, अखिल विश्व त्राता।
हर हर हर महादेव महादेव!

हमा अतिदिन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सभी विधि निर्मल मति करा, अपन करा लीजै।
हर हर हर महादेव महादेव!

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॥ आरती श्री जगदीशजी ॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

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॥ श्री लक्ष्मीनारायण आरती ॥

जय लक्ष्मी-विष्णो। जय लक्ष्मीनारायण,

जय लक्ष्मी-विष्णो। जय लक्ष्मीनारायण,
जय लक्ष्मी-विष्णो। जय माधव, जय श्रीपति,
जय, जय, जय विष्णो॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

जय चम्पा सम-वर्णे, जय नीरदकान्ते।
जय मन्द स्मित-शोभे, जय अदभुत शान्ते॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

कमल वराभय-हस्ते, शङ्खादिकधारिन्।
जय कमलालयवासी, निगरुडासनचारिन्॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

सच्चिन्मयकरचरणे, सच्चिन्मयमूर्ते।
दिव्यानन्द-विलासि, निजय सुखमयमूर्ते॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

तुम त्रिभुवन की माता, तुम सबके त्राता।
तुम लोक-त्रय-जननी, तुम सबके धाता॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

तुम धन जन सुखसन्ति, जय देनेवाली।
परमानन्द बिधाता, तुम हो वनमाली॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

तुम हो सुमति घरों में, तुम सबके स्वामी।
चेतन और अचेतन के अन्तर्यामी॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

शरणागत हूँ मुझ पर, कृपा करो माता।
जय लक्ष्मी-नारायण, नव-मन्गल दाता॥
जय लक्ष्मी-विष्णो।

॥ श्री रामायणजी की आरती ॥

आरती श्री रामायण जी की।

आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

गावत ब्राह्मादिक मुनि नारद।
बालमीक विज्ञान विशारद।
शुक सनकादि शेष अरु शारद।
बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

गावत वेद पुरान अष्टदस।
छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस।
मुनि-मन धन सन्तन को सरबस।
सार अंश सम्मत सबही की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

गावत सन्तत शम्भू भवानी।
अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी।
व्यास आदि कविबर्ज बखानी।
कागभुषुण्डि गरुड़ के ही की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

कलिमल हरनि विषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।
दलन रोग भव मूरि अमी की।
तात मात सब विधि तुलसी की॥
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

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॥ शनिदेव की आरती ॥

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

क्रीट मुकुट शीश सहज दीपत है लिलारी।
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।
लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हमहैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

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॥ शांति पाठ ॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

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