॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ गणेशोत्सव ॥
देश भर मे मनाए जाने वाले गणेशोत्सव के दौरान एवं अन्य धार्मिक आयोजनों मे प्रथम पूज्य श्री गणेश की स्तुति, आरती, स्तोत्र एवं अन्य प्रकार की रचनाओं के Hindi Bhajan Lyrics उपलब्ध हैं । श्री गणेश से संबन्धित Hindi Bhajan Lyrics को आप अपनी आवश्यकतानुसार चयन कर गाने का आनंद ले सकते हैं ।
॥ नवरात्रि उत्सव॥
नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा की जाती है। ये नौ अवतार हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। देवी दुर्गा की भक्ति के लिए अनेक प्रकार के गीत गाए जाते हैं। ये भक्ति गीत विभिन्न रूपों में होते हैं और भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। निम्नलिखित प्रकार के देवी दुर्गा के भक्ति गीत हैं जिसे आप अपनी इच्छानुसार चयन कर भक्ति कर सकते हैं :
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पाठकों के लिए संदेश
मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की लोक-संगीत धरोहर अद्वितीय और समृद्ध है। यहाँ के लोकगीत जैसे “जस”, “आल्हा” और अन्य भक्तिमय गीत एवं पारंपरिक गाने, इस क्षेत्र की आत्मा को प्रदर्शित करते हैं। इन लोकगीतों में न केवल इस क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा की झलक मिलती है, बल्कि इन गीतों के माध्यम से लोकजीवन की कठिनाइयों, वीरता, और भक्ति की कथाएँ भी जीवंत होती हैं।
“जस” गीतों में देवी-देवताओं की महिमा और गुणगान का वर्णन होता है। इन गीतों के माध्यम से श्रद्धालु अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करते हैं। संस्कृत श्लोकों में कहा गया है:
“श्रीदेवीस्तुतिमाला यस्याः कथायां प्रदीपते। तस्याः प्रभावं तीर्थं च स्वयमेव सुवर्णवत्॥”
अर्थात जिस कथा में देवी की स्तुति की माला होती है, वह स्थान स्वयं में एक तीर्थ बन जाता है।
“आल्हा” गीत वीरता की कहानियाँ गाते हैं। ये गीत स्थानीय योद्धाओं की वीरगाथाओं को जीवंत करते हैं और युवाओं में साहस और वीरता का संचार करते हैं। संस्कृत श्लोकों में वीरता का वर्णन इस प्रकार है:
“धैर्यं सर्वत्र साधनं, यस्मिन्हि सत्यं स्थिरं च। वीरं पुरुषं प्रचुरं समुपेत्य वर्धते॥”
अर्थात, धैर्य ही सभी साधनों का मूल है, जिसमें सत्य और स्थिरता होती है। वीर पुरुष की वीरता प्रकट होती है और उसका सम्मान बढ़ता है।
महाकौशल क्षेत्र के अन्य भक्तिमय गीत और पारंपरिक गाने जैसे “भजन” और “कीर्तन” भी इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का कार्य करते हैं। इन गीतों में भगवान की महिमा, उनकी लीलाओं और भक्तों की भक्ति का वर्णन होता है। भजनों में गायी जाने वाली संस्कृत श्लोकों में कहा गया है:
“भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥”
अर्थात, गोविन्द का भजन करो, गोविन्द का भजन करो, हे मूढ़मनुष्य। समय आने पर यह डुकृञ् (कर्म) तुम्हें नहीं बचा पाएगा।
महाकौशल के ये लोकगीत इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखते हैं और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। इनके माध्यम से न केवल भक्तिमय और वीरतापूर्ण कथाओं का प्रसार होता है, बल्कि समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संचार भी होता है। इन गीतों का संगीत और शब्द मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाते हैं जो श्रोताओं को आध्यात्मिक अनुभव की ओर ले जाता है। ये गीत हमारी सांस्कृतिक पहचान को संजोए रखते हैं और हमें अपनी धरोहर पर गर्व करने का अवसर प्रदान करते हैं।
महाकौशल के लोकगीतों की यह धरोहर अनमोल है और इसे संजोना हमारा कर्तव्य है। इन गीतों को सुनकर और गाकर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर छोड़ सकते हैं। इन गीतों का भाव हमें संयम, धैर्य, वीरता और भक्ति की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। इस प्रकार, महाकौशल के ये लोकगीत हमारे जीवन में एक विशेष स्थान रखते हैं और हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखते हैं।
🙏जयो महाकौशल लोकगीत! 🙏
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः,
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः,
सर्वं शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
॥ सर्वा ऋष्टा सुशान्तिर्भवतु॥